Advertisements
तुझमें मुझमें बस एक अंतर
तुम नारी हो, मैं नर हूं
करती हो सृजन जीवन का तुम
मैं इतिहास नया रचता हूं l
तुम बहती सरिता हो
मैं सागर विशाल हूं
तुम लज्जा हो लाजवंती सी
मैं आलिंगन को आतुर हूं
तुझमें मुझमें बस एक अंतर …
तुम फूलों की कोमलता हो
मैं वृक्ष सा कठोर हूं
लिपटती हो तुम लता सी
मैं हिमालय सा अभिमान हूं
तुझमें मुझमें बस एक अंतर …
तुम मेरी प्रेरणा हो
मैं प्रवाह तुम्हारा हूं
तुम सौन्दर्य की देवी हो
मैं साहस तुम्हारा हूं ,
तुझमें मुझमें बस एक अंतर …
तुम धरा की हरियाली हो
मैं अनंत आकाश हूं
तुम त्याग की मूरत हो
मैं हर साँस तुम्हारे पास हूँ ,
तुझमें मुझमें बस एक अंतर …
मैं अधिकार जताता आया हूँ
तुम समर्पण करती आयी हो
मैं जब जब बरसा सावन बनकर
तुम जीवन बनकर लहलहाई हो
तुझमें मुझमें बस एक अंतर…
तुम नारी हो , मैं नर हूं !!!
श्री सुभाष जी जाखड़ द्वारा रचित
—————————-
बहुत सुंदर रचना ।